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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष-उपविषोंकी चिकित्सा - "कुचला"। १३६ (१२) अगर अधिक स्त्री-प्रसंगसे या हस्तमैथुनसे या और कारणसे वीर्य क्षय होकर शरीरमें कमजोरी बहुत ज़ियादा हो गई हो, शरीर और नसें ढीली पड़ गई हों अथवा वीर्यस्राव होता हो, लिंगेन्द्रिय निकम्मी या कमजोर हो गई हो-नामर्दीका रोग हो गया हो, तब आप कुचला सेवन कराइये; आपको यश मिलेगा। कुचला खिलानेसे वीर्य पुष्ट होकर शरीर मजबूत होगा। वीर्यवाहिनी नसोंका चैतन्य स्थान पीठ के बाँसेके ज्ञान-तन्तुओंमें है। वह भी कुचलेसे पुष्ट होता है, अतः वीर्यवाहक नसें जल्दी ही वीर्यको छोड़ नहीं सकतीं; इसलिये वीर्यस्राव रोग भी आराम हो जायगा । लिंगेन्द्रियकी कमजोरी या नामर्दीके लिये तो कुचला बेजोड़ दवा है। (१३) अगर किसीकी मानसिक शक्ति वीर्यक्षय होने या ज़ियादा पढ़ने-लिखने आदि कारणोंसे बहुतही घट गई हो, चित्त ठिकाने न रहता हो, जरासे दिमागी कामसे जी घबराता हो, बातें याद न रहती हों, तो आप उसे कुचला सेवन कराइये । कुचलेके सेवन करनेसे उसकी मानसिक शक्ति खूब बढ़ जायगी और रोगी आपको आर्शीवाद देगा। (१४) स्त्रियोंको होनेवाले वातोन्माद या हिस्टीरिया रोगमें भी कुचला बहुत गुण करता है। (१५) शुद्ध कुचला १ तोले और कालीमिर्च १ तोले--दोनोंको पानीके साथ महीन पीसकर, उड़दके बराबर गोलियाँ बना लो और छायामें सुखाकर शीशीमें रखलो । एक गोली बँगला पानमें रखकर, रोज सवेरे खानेसे पक्षावध, पक्षाघात, एकाङ्गवात, अर्द्धाङ्ग या फालिज,--ये रोग आराम हो जाते हैं। नोट-जब वायु कुपथ्यसे कुपित होकर, शरीरके एक तरफके हिस्सेको या कमरसे नीचेके भागको निकम्मा कर देता है, तब कहते हैं “पक्षाघात" हुआ है। इस रोगमें शरीरके बन्धन ढीले हो जाते हैं और चमड़ेमें स्पर्श-ज्ञान नहीं रहता । वैद्य इसकी पैदायश वातसे और हकीम कफसे मानते हैं। हिकमतके For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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