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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३४ - चिकित्सा-चन्द्रोदय । an खुलासा-कुचलेका रोगी एक, दो, चार या पाँच दिन तक बीमार रहकर नहीं मरता । वह अगर मरता है, तो दो-चार घण्टोंमें ही मर जाता है । पर धनुस्तम्भ रोगका रोगी घण्टोंमें नहीं मरता, कम-से-कम एक रोज़ जीता है। धनुस्तंभ रोगी भी १० रात नहीं जीता; यानी १० दिनके पहले ही मरनेवाला होता है तो मर जाता है । कहा है-"धनुस्तंभे दशरात्रौं न जीवति ।" यह भी याद रखो कि, कुचले और धनुस्तंभके रोगी सदा मर ही नहीं जाते; श्रारोग्य-लाभ भी करते हैं। भेद इतना ही है, कि कुचलेवाला या तो दो-चार घण्टोंमें श्राराम हो जाता है या मर जाता है; पर धनुस्तंभवाला एक, चार या पाँच दिनों तक जीता है । फिर या तो मर जाता है या आरोग्य-लाभ करता है । __ नोट-धनुस्तंभ रोगके लक्षण लिख देना भी नामुनासिब न होगा। धनुस्तंभके लक्षण-दूषित वायु नसोंको सुकेड़कर, शरीरको धनुषकी तरह नबा देता है; इसीसे इस रोगको "धनुस्तंभ" कहते हैं। इस रोगमें रङ्ग बदल जाता है, दाँत जकड़ जाते हैं, अङ्ग शिथिल या ढीले हो जाते हैं, मूर्छा होती और पसीने आते हैं । धनुस्तंभ रोगी दस दिन तक नहीं बचता । कुचलेका विष उतारनेके उपाय । प्रारम्भिक उपाय(क) अगर कुचला या संखिया वगैरः जहर खाते ही मालूम हो जाय, तो फौरन वमन कराकर जहरको आमाशयसे निकाल दो; क्योंकि खाते ही विष आमाशयमें रहता है। आमाशयसे विषके निकल जाते ही रोगी आराम हो जायगा। (ख) अगर देरसे मालूम हो या इलाज में देर हो जाय और विष पक्काशयमें पहुँच जाय, तो दस्तोंकी दवा देकर, गुदाकी राहसे विषको निकाल दो। नोट-जहर खानेपर वमन और विरेचन कराना सबसे अच्छे उपाय हैं। इसके बाद और उपाय करो। कहा है:-"विषभुक्रवतेदद्यादूध्वं वा अधश्च शोधनं ।" यानी जहर खानेवालेको वमन और विरेचन दवा देनी चाहिये। वमन या कय कराना इसलिये पहले लिखा है, कि सभी ज़हर पहले आमाशयमें रहते हैं। जहाँ तक हो, उन्हें पहले ही वमन द्वारा निकाल देना चाहिये । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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