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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ चिकित्सा - चन्द्रोदय । ( २ ) घी पिलाना मुख्य उपाय है । तुरन्त ही घी पिलाकर क़य करा देने से ज़हर का असर नहीं होता । कुचलेके विकार और धनुस्तंभ के लक्षणों का मुक़ाबला । जियादा कुचला खा जानेसे, जब उसके विषका प्रभाव शरीरपर होता है, तब प्रायः धनुस्तंभ रोगके-से लक्षण होते हैं । पर चन्द बातों में फर्क होता है, अतः हम धनुस्तंभ रोग और कुचलेके विष के लक्षणोंका मुक़ाबला करके दोनोंका अन्तर बताते हैं: ( १ ) कुचले के ज़हरीले लक्षण आरम्भ से ही साफ़ दिखाई देते हैं और जल्दी-जल्दी बढ़ते जाते हैं; पर धनुस्तंभ के लक्षण आरम्भ में अस्पष्ट होते हैं; यानी साफ़ दिखाई नहीं देते, किन्तु पीछे धीरे-धीरे बढ़ते रहते हैं । (२) कुचलेके ज़हरीले असर से पहले, सारे शरीर के स्नायु खिंचने लगते हैं और पीछे मुँह और दाँतोंकी कतार भिंचती है; पर धनुस्तंभ रोग होनेसे पहले मुँह और दाँतोंकी कतार भिंचती है और पीछे शरीर के भिन्न-भिन्न अङ्गों के स्नायु खिंचने या तनने लगते हैं । ( ३ ) कुचले से आरम्भ यानी शुरूमें ही शरीर धनुष या कमानकी तरह नब जाता है; पर धनुस्तंभ रोग होने से शरीर पीछे धीरे-धीरे धनुष या कमानकी तरह नबने लगता है । नोट -- कुचले से पहले ही स्नायु या नसें खिंचने लगती हैं, इससे पहले ही --शुरू में ही शरीर धनुषकी तरह नब जाता है, क्योंकि नसों के खिंचाव या तनाव से ही तो शरीर कमानकी तरह मुकता है और नसों या स्नायुओं को संकुचित करनेवाला वायु है । इसके विपरीत धनुस्तंभ रोग में स्नायु पीछे खिंचने लगते हैं, इसीसे शरीर भी धनुषकी तरह पीछे ही नबता है । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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