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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निवेदन। FRD ODE गदाधार, जगदात्मा श्रीकृष्णचन्द्रको अनन्त धन्यवाद W ज हैं, कि सैकड़ों विघ्न-वाधा और आपदाओंके होते हुए ODE भी आज "चिकित्सा-चन्द्रोदय" पाँचवें भागको उन्होंने पूरा करा दिया। हिन्दी-प्रेमी पाठकोंको भी हार्दिक धन्यवाद है, जिनकी कद्रदानी और उत्साह-वर्द्धनसे हम अपना धन और समय लगाकर इस ग्रन्थके भाग-पर-भाग निकाल रहे हैं। अगर पबलिककी रुचि न होती, उसे यह ग्रन्थ न रुचता, पसन्द न आता, तो हम इस प्रन्थका दूसरा भाग निकालकर ही रुक जाते। पर पहले और दूसरे भागके, बारह महीनोंमें ही, नवीन संस्करण छप जानेसे मालूम होता है, पबलिकने इस ग्रन्थको पसन्द किया है। अगर सर्वसाधारणकी ऐसी ही कृपा रही, तो इसके शेष तीन भाग भी शीघ्र ही निकल जायँगे। इस भागमें हमारा विचार, आयुर्वेदके और ग्रन्थोंकी तरह, क्रमसे श्वास, खाँसी, हिचकी आदि लिखनेका था, पर हजारों ग्राहकोंमेंसे कितनों ही ने लिखा कि, पाँचवें भागमें स्थावर और जंगम विषचिकित्सा लिखिये। हमारे युक्तप्रान्तमें ही और जहरीले जानवरोंके अलावः केवल सर्पके काटनेसे गतवर्ष प्रायः सत्तावन हजार आदमी कालके कराल गालमें समा गये। कितने ही गाँवोंके लोग बिच्छुओं, कनखजूरों और मैंडक, छिपकली आदिके काटनेसे कष्ट भोगते और बहुधा मर भी जाते हैं। कितने ही ग्राहकोंने लिखा, कि आप इस भागमें स्त्रियोंके रोगोंकी चिकित्सा लिखिये। आजकल जिस तरह LL फ्री सदी पुरुषोंको प्रमेह-राक्षसने अपने भयानक चंगुलोंमें फंसा रखा है, उसी तरह स्त्रियाँ प्रदर-रोग, सोम-रोग और बहुमूत्र आदि For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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