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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा-"अफ्रीम"। ११६ अफीम रह गई और ठाकुर साहबका पीछा अफीम-राक्षसीसे छूट गया। मतलब यह है, अकीम अनेक गुणवाली होनेपर भी बड़ी बुरी है। यह दवाकी तरह ही सेवन करने योग्य है । इसकी आदत डालना बहुत ही बुरा है। जिन्हें इसकी आदत हो, वे इसे छोड़ दें। ऊपरकी विधिसे रोज़ जरा-जरा घटाने और घी-दूध खूब खाते रहनेसे यह छूट जाती है । हाँ, मनको कड़ा रखनेकी ज़रूरत है। नीचे हम यह दिखलाते हैं कि, अझीम छोड़नेवालेकी क्या हालत होती है। उसके बाद हम अफीम छोड़नेके चन्द उपाय भी लिखेंगे। अफीम छोड़ते समयकी दशा । जरा-जरा घटानेका नतीजा । जब आदमी रोज जरा-जरासी अफ़ीम घटाकर खाता है, तब उसे पीड़ा होती है, हाथ-पैर और शरीरमें दर्द होता है, जी घबराता है, मन काम-धन्धेमें नहीं लगता, पर उतनी ज़ियादा वेदना नहीं होती, जो सही ही न जा सके। अगर अफीम बाजरेके दाने-भर रोज़ घटाघटाकर खानेवालेको दी जाय, पर उसे यह न मालूम हो कि, मेरी अक्रीम घटाई जाती है, तो उतनी भी पीड़ा उसे न हो। यों तो बाजरेके दानेका दसवाँ भाग कम होनेसे भी खानेवालेको नशा कम आता है, पर जरा-जरासी नित्य घटाने और खानेवालेको मालूम न होने देनेसे बहुतोंकी अफीम छूट गई है । इस दशामें अफीम तोलकर लेनी होती है । रोज एक अन्दाजसे कम करनी पड़ती है; पर इस तरह बड़ी देर लगती है। इसलिये इसका एकदम छोड़ देना हो सबसे अच्छा है। एक हाते घोर कष्ट उठाकर, शीघ्र ही राक्षसीसे पीछा छूट जाता है। एकदमसे छोड़ देनेका नतीजा। अगर कोई मनुष्य अपनी अफ्रीमको एकदमसे छोड़ देता है, तो उसके शरीर, हाथ-पैर और पीठके बाँसे में बेहद पीड़ा होती है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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