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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा-"अफ्रीम"। ११५ साफ़ अफ़ीमकी पहचान । अफीमका वजन बढ़ानेके लिये नीच लोग उसमें खसखसके पेड़के पत्ते, कत्था, काला गुड़, सूखे हुए पुराने कण्डोंका चूरा, बालू रेत या एलुआ प्रभृति मिला देते हैं। वैद्यों और खानेवालोंको अफीमकी परीक्षा करके अफीम खरीदनी चाहिये; क्योंकि ऐसी अफीम दवामें पूरा गुण नहीं दिखाती और ऐसे ही खानेवालोंको नाना प्रकारके रोग करती है । शुद्ध अफीमकी पहचान ये हैं: (१) साफ़ अफीमकी गन्ध बहुत तेज़ होती है। (२) स्वाद कड़वा होता है। (३) चीरनेसे भीतरका भाग चमकदार और नर्म होता है। (४) पानीमें डालनेसे जल्दी गल जाती है। (५) साफ अफीम १०५ मिनट सूंघनेसे नींद आती है। (६) उसका टुकड़ा धूपमें रखनेसे जल्दी गलने लगता है। (७) जलानेसे जलते समय उसकी ज्वाला साफ़ होती है, और उसमें धूआँ ज़ियादा नहीं होता। अगर जलती हुई अफीम बुझाई जाय, तो उसमेंसे अत्यन्त तेज़ मादक गन्ध निकलती है। जिस अफीममें इसके विपरीत गुण हों, उसे खराब समझना चाहिये। अफीम शोधनेकी विधि ।। अफीमको खरल में डालकर, ऊपरसे अदरखका रस इतना डालो, जितनेमें वह डूब जाय; फिर उसे घोटो । जब रस सूख जाय, फिर रस डालो और घोटो। इस तरह २१ बार अदरखका रस डाल-डालकर घोटनेसे अफीम दवाके काम-योग्य शुद्ध हो जाती है। .. नोट- हरबार घुटाईसे रस सूखनेपर उतना ही रस डालो, जितनेमें अफीम डूब जाय । इस तरह अफ्रीम साफ़ होती है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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