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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा -- “ अफीम” | १०६ नोट -- अफीम और चूना दोनों बराबर हों । गोली पानीके साथ निगलना चाहिये । (२५) अफीम, शुद्ध कुचला और सफेद मिर्च - तीनों को बराबरबराबर लेकर, अदरखके रसमें घोटकर, मिर्च- समान गोलियाँ बना लो। एक-एक गोली सोंठके चूर्ण और गुड़के साथ लेनेसे आम-मरोड़ीके दस्त, पुराने से पुराना अतिसार या पेचिश फौरन आराम हो जाते हैं । परीक्षित है । (२६) नीबू के रस में अफीम मिलाकर और उसे दूधमें डालकर पीने से रक्तातिसार और आमातिसार आराम हो जाते हैं । (२७) जल संत्रास रोग, हड़कवाय या पागल कुत्तेके काटनेपर रोगीको अफीम देने से लाभ होता है । ( २८ ) वातरक्त रोग में होनेवाला दाह अफीम से शान्त हो जाता है । वातरक्त रोगको अफीम समूल नाश नहीं कर देती, पर फायदा अवश्य दिखाती है । (२६ ) अगर सिर में फुन्सियाँ होकर पकती हों और उनसे मवाद गिरता हो तथा इससे बाल झड़कर गंज या इन्द्रलुप्त रोग होता हो, तो आप नीबू के रसमें अफीम मिलाकर लेप कीजिये; गंज रोग आराम हो जायगा । (३०) अगर स्त्री मासिक-धर्म के समय पेड़ में दर्द होता हो, पीठका बाँसा फटा जाता हो अथवा मासिक खून बहुत जियादा निकलता हो, तो आप इस तरह अफीम सेवन कराइये: अफीम दो माशे, कस्तूरी दो रत्ती और कपूर दो रत्ती -- इन तीनोंको पीस-छानकर, पानीके साथ घोटकर, एक-एक रत्तीकी गोलियाँ बना लो | इन गोलियोंसे स्त्रियों के आर्त्तव या मासिक खूनका ज़ियादा गिरना, बच्चा जननेके पहले, पीछे या उस समय अधिक आर्त्तव - खूनका गिरना, गर्भस्राव में अधिक रक्त गिरना तथा सूतिकासन्निपात – ये सब रोग आराम होते हैं । परीक्षित है । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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