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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष उपविषोंकी विशेष चिकित्सा - अफ़ीम" । हं देनेसे, वहाँका घोर दर्द तत्काल छूमंतरकी तरह उड़ जाता है । परन्तु साथ ही एक प्रकारका नशा चढ़ता है और उससे पूर्व आनन्द बोध होता है । इस तरह दो-चार बार मारफ़िया शरीरके भीतर छोड़ने से इसका व्यसन हो जाता है । रह-रहकर उसी आनन्दकी इच्छा होती है । तब वहाँ के मर्द और औरत, खासकर मेमें, इसे अपने शरीर में छुड़वानेके लिये, डाक्टरोंके पास जाती हैं। फिर जब इसके छोड़नेका तरीक़ा जान जाती हैं, अपने पास हर समय मारया से भरी हुई पिचकारी रखती हैं । उस पिचकारीकी सूईके मुँहको अपने शरीरके किसी भागमें गड़ाती हैं और मारफ़ियाकी एक बूँद उसमें डाल देती हैं । इसके शरीर में पहुँचते ही थोड़ी देर के लिये आनन्दकी लहरें उठने लगती हैं । जब उसका असर जाता रहता है, तब फिर उसी तरह शरीरमें छेद करके, फिर एक बूँद मारकिया उसमें डाल देती हैं । उनके शरीर मारे छेदों या घावोंके चलनी हो जाते हैं । फिर भी उनकी यह खोटी लत नहीं छूटती । इस तरह रोज करनेसे हिन्दुस्तान में जिस तरह गुड़ और तमाखू कूटकर गुड़ाखू बनाई जाती है और छोटी सुलफी चिलमोंमें रखकर पीयी जाती है, उस तरह दक्खन महासागर के सुमात्रा, बोन्यू आदि टापु रहनेवाले अफीम में चीनी और केले मिलाकर गुड़ाखू बनाते और पीते हैं । तुरकिस्तान के रहनेवाले अफीम में गाँजा प्रभृति नशीले पदार्थ मिलाकर या और मसाले मिलाकर माजून बनाकर खाते हैं । कोई-कोई चीनी और अफीम घोलकर शर्बत बनाते और पीते हैं । आसाम, बरमा और चीन देशमें तो अफीमसे अनेक प्रकारके खानेके पदार्थ बनाकर खाते हैं। मतलब यह है, कि दुनियाके सभी देशों में तमाखूकी तरह, इसका प्रचार किसी-न-किसी रूपमें होता ही है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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