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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८४ www.kobatirth.org चिकित्सा-चन्द्रोदय 1 gootcooooo Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाँगका वर्णन और उसके मद-नाशक उपाय | PROOND ********** 120000 स्कृतमें भंगके गुणावगुण अनुसार, बहुतसे नाम हैं । खूं8 नामोंसे ही भंगके गुण मालूम हो जाते हैं। जैसे—मादिनी, ०००० विजया, जया, त्रैलोक्य-विजया, आनन्दा, हर्षिणी, मोहिनी, मनोहरा, हरा, हरप्रिया, शिवप्रिया, ज्ञानवल्लिका, कामाग्नि, तन्द्रारुचिवर्द्धिनी प्रभृति । संस्कृत में भाँगको भङ्गा भी कहते हैं । उसीका अपभ्रंश "भंग " है । बँगला में इसे सिद्धि, भंग और गाँजा कहते हैं। मरहठी में भाँग और गाँजा, गुजराती में भाँग और अँगरेज़ी में इण्डियन हैम्प कहते हैं । भाँग कफनाशक, कड़वी, ग्राही--काविज, पाचक, हल्की, तीक्ष्ण, गरम, पित्तकारक तथा मोह, मद, वचन और अग्निको बढ़ानेवाली एवं कोढ़ और कफनाशिनी, बलवर्द्धिनी, बुढ़ापेको नाश करनेवाली, मेधाजनक और अग्निकारिणी है । भंगसे अग्नि दीपन होती, रुचि होती, मल रुकता, नींद आती और स्त्री प्रसङ्गकी इच्छा होती है। किसीकिसी ने इसे कफ और वात जीतनेवाली भी लिखा है । हिकमत के एक निघण्टुमें लिखा है: -- भाँग दूसरे दर्जेकी गरम, रूखी और हानि करनेवाली है। इससे सिर में दर्द होता और स्त्री-प्रसंग में स्तम्भन या रुकावट होती है । भाँग पागल करनेवाली, नशा लानेवाली, वीर्यको सोखनेवाली, मस्तिष्क - सम्बन्धी प्राणों को गदला करनेवाली, आमाशय की चिकनाईको खींचनेवाली और सूजनको लय करनेवाली है। भाँगके बीजोंको संस्कृत में भङ्गाबीज, फ़ारसी में तुरूम बंग और अरबी में बजरुल - कनव कहते हैं। इनकी प्रकृति गरम और For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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