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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ चिकित्सा-चन्द्रोदय | शिरः पीड़ाको शान्त करनेवाला, सूजनके भीतरी मलको पकानेवाला, चिकनाईको सोखनेवाला और स्तम्भन करनेवाला है। इसके पत्तोंका लेप अवयवों को गुणकारी है। " तिब्बे अकबरी" में लिखा है, धतूरा खानेसे घुमरी, आँखों के सामने अँधेरा और नेत्रों में सुर्खी होती है। जब यह जियादा खाया जाता है, तब मनुष्य बुद्धिहीन हो जाता है । साढ़े चार माशे धतूरा खानेसे मृत्यु हो जाती है । “वैद्यकल्पतरु' में एक सज्जन लिखते हैं-धतूरेको अँगरेजी में स्ट्रोमोनियम कहते हैं। इसके बीज अधिक जहरीले होते हैं। कभी-कभी इसके ज़हर से मृत्यु भी हो जाती है। दो-चार बीजोंसे ज़हर नहीं चढ़ता । हाँ, अधिक बीज खानेसे ज़हर चढ़ता है । मुख्य लक्षण ये हैं: - सिर घूमना, गले में सूजन, आँखोंकी पुतलियोंका फैल जाना, आँखोंसे कुछ न दीखना, आँखों और चेहरेका लाल हो जाना, रोगीका बड़बड़ाना, हाथोंको इस तरह चलाना जैसे हवा में से कोई चीज़ पकड़ता हो । अन्तमें, बेहोश हो जाना और नाड़ीका जल्दी-जल्दी चलना । जब बहुत ही ज़हर चढ़ जाता है, तब शरीर शीतल होकर मृत्यु हो जाती है । हाथोंका चलाना धतूरेके विषका मुख्य लक्षण है । उपाय- -वमन और रेचन देकर क्रय और दस्त कराओ । आध आध घण्टे में रोगीको काफी पिलाओ और उसे सोने मत दो । तेल मिलाकर गरम पानी पिलाओ। धतूरा शोधन विधि | धतूरेको गाय के मूत्र में, दो घण्टे तक भिगो रखो; धतूरा शुद्ध हो जायगा । श्रौषधि-प्रयोग | चूँकि धतूरा बड़े काम की चीज़ है; अतः हम इसके चन्द प्रयोग लिखते हैं:-- For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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