SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Acharya Sasager a ndi दा सान्वय भाषान्तर ॥३ ॥ चंद्रयशः । राज्यं संसारकान्तारे शृङ्गाटोऽयमटन्निह । कलितस्खलितः श्रीभिः पिशाचीभिः प्रपात्यते ॥५॥ चरित्रं ___ अन्वयः-संसारकांतारे राज्यं शृंगाटः, इह अटन् अयं पिशाचीभिः श्रीभिः कलितस्खलितः प्रपात्यते ॥५॥ अर्थः-आ संसाररूपी वना राज्य (एक) चोवटा सर छे, तेमां फरनारा आ जीवने पिशाची सरखी लक्ष्मी ठोकर खवरावी पाडी नाखे छे. ॥ ५ ॥ I वहन्ति मणयो मोहमहीपमहदीपताम् । यल्लोभलोलुभा नाधः के पतन्ति पतङ्गवत् ॥ ६॥ ___अन्वयः-मणयः मोह महीप मह दीपतो वहंति, यल्लोभ लोलुभाः के पतंगवत् अपः न पतंति ॥६॥ अर्थः-रत्नो मोहराजाना तेजस्वी दीपकपणाने धारण करे छे, जेना लोभथी ललचायेला कया माणसोनो पतंगोनीपेठे अधःपात नथी थतो ॥६॥ तितीर्षवो भवाम्भोधिं बोधिबोहित्थवाहिताः । त्यजन्ति दूरतो मध्यभूधरानिव सिन्धुरान् ॥ ७॥ अन्वयः-बोधि मोहित्य वाहिताः भवाभोधि तितीर्षवः मध्यभूधरान इस सिंधुरान दूतः त्यति.॥७॥ अर्थः-मानरूपी वहाणमा वेठेला (डाह्या माणसो) संसारसमुद्रने तरी जवानी इच्छाथी बचे रहेला खराबाओसरखा, हाथीओ. 18/ ने दूवीज वजी दे छे. ॥७॥ KAKARAOKAKAKAR For Private And Personal use only
SR No.020143
Book TitleChandrayash Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1928
Total Pages39
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy