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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९३ ) ॥ श्री नमिजिन स्तवन ॥ || दोसीडाने हाटे जाज्यो लाल, लाल कसूबो भींजे छे- ए देशी ॥ शी-दु ་ विजयनरेसर नंदन लाल, विशसुत मन मोहे छे; 'नीलोत्पल लंछन पाए लाल, सोवनवान तनु सोहे छे || १|| मिथुलानयरीनो वासी लाल, शिवपुरनो मेवासी छे; मुनी वीश सहस जस पासे लाल, तेज कळा सुविलासी छे || २ || प्रभु पंनर धनुष परिमाणे लाल, जगमां कोरत व्यापी छे: प्रभु जीवदयाने थाणें लाल, सुमतिलता जिने थापी छे ॥ ३ ॥ नमिनाथ नमो गुणखाणी लाल, अक्षय बळी अविनासी छे; तेणे वात सकळ ए जाणी लाल, जेहने आशा दासी हे ||४|| श्री सुमतिविजय गुरु नामे लाल, अविचळ लीला लाधी छे; कहे रामविजय जिन ध्याने लाल, कीरत कमळा वाधी छे ॥ ५ ॥ || श्री नेमनाथ जिन स्तवन ॥ For Private And Personal Use Only ॥ युग गोवाळणी गोरसडावाळी रे उभी रहेने - ए देशी || || शामळीया लाल तोरणथी रथ फेरयो कारण कहोने, गुण गिरुआ लाल मुजने मूकी चाल्या दरिसण धोने ॥ ए आंकणी ॥ हुं छं नारि ते तपारी, तुम्हे से प्रोति मूकी अम्हारी ॥ तुम्हे संयम स्त्री मनमां धारी ॥ शामळीया० ||१|| तुम्हे पशु उपर किरपा आणी, तुम्हे माहरी वात न को जाणी || तुम्ह विण परशुं नहीं को प्राण १ नीला कमळनुं.
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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