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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८०) चाकरी ॥ सा० ॥ चाहे चित्त नित्य रूप ॥ जिणं० ॥ अजित० ॥ ५॥ इति ॥ ॥श्रीसंभवनाथ जिन स्तवन । ॥ सिद्धगिरी ध्यावो भविका सिद्धगिरी ध्यावो-ए देशी ॥ ॥ वंदोरे भविका संभवनाथ जिणंदा, जितारि नरवर वैसे उग्यो दिणंदा ॥ लालन उग्यो दिणंदा ॥ माता सेनादेवी उदरे अवतरिया, करम खपावी प्रभु भवजळ तरिया ॥ लालन भवनळ० ॥१॥ अनोपम साहिब तोरी सेवा में पामी, तो लहि वंछित सुख संपद स्वामी ॥ लालन संपद० ॥ ताहरो दरिशण जिनजी लागे छे प्यारो, एक वार मोहि नेह निजरै निहाळो ॥ लालन निजरे० ॥२॥ जिम दिनकर उग्ये कमळ विकासे, तिम तुम दीठे मोठं मनडुं हीसे ॥ लालन मन० ॥तुमे निरागी माहरा मनडाना रागी, तुमशुं पुरव भवनी प्रीतडी जागी। लालन प्रीतडी० ॥३॥ तुं मेरे दिलको जानी तुंही के ग्यानी, माहरा प्रभुजी ताहरी अकळ कहानी ॥ लालन अकळ० ॥ अकळ सरुप निरंजन कहीये, ताहरी आण सदा शिर वहीये ॥ लालन सदा० ॥ ४॥ वाहाल घरी साहिब चाकरि कीजे, तो मन मनाव्या विण किम मन रीझे ।। लालन किम० ॥ पंडित भेरुविजय गुरु चरणे, सेवक विनीत कहे राखो शरणे ॥ लालन कहे० ५॥ इति ॥ . .१ सूर्य. २ वात. ३ आज्ञा. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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