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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७०) श्रीधर्मनाथ जिन स्तवन । आबु अचळ रलीयामणोरे लोल-ए देशी रतनपुरी नयरी हुओरे लाल, लंछन वन उदार ॥ मेरे प्यारे॥ भानु 'नृपति कुल केसरीरे लाल, सुबता मात मल्हार ॥ मेरे प्यारेरे ॥धर्म जिनेसर ध्याइयेरे लाल ॥१॥ आयु वरष दश लाखनुरे लाल, धनु पण पाल' प्रसिद्ध ॥ मे० ॥ कंचन चरण विराजतोरे लाल, सहस साथे व्रत लीय ॥ मे० ध० ॥२॥ सिद्धिकामिनी करग्रहेरे लाल, समेत शिखर अतिरंग ॥ मे० ॥ सहस चोसठ सोहामणारं लाल, प्रभुना साधु अभंग ॥ मे० धः ॥३॥ बासठ सहस सुसाहुणीरे लाल, वली उपरि सत चार ॥ मे ॥ कंदनी शासन सुरीरे लाल, किन्नर सुर सुविचार ॥ मे० धः ॥४॥ लटकाले तुज लोअगेरे लाल, मोह्या जगजन चित्त ॥ मे० ॥ श्रीनयविजय विबुधतगोरे लाल, सेवक समर नित्त ॥ मे० ध० ॥५॥ श्रीशांतिनाथ जिन स्तवन। (त्रिभुवन तारण तीरथ, (अथवा) देखी कामीनी दो के कामे व्यापीयोरे के कामे० ए देशी ) गजपुर नयर विभूषण, दूषण टालतोरे के दूषण ॥ विश्व. १. राजा. २. पिस्ताळीश. ३. मोक्षरुपी स्त्रीनो समेतशिखर उपर हाथ पकड्यो. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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