SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५७ ) श्रीनेमिनाथ जिन स्तवन । (राजा जो मिले, ( अथवा) कीसके चेले कीसके पुत ए देशी) ___ क्या कियो तुम्हे कहो मेरे सांई, फेरी चलें रथ तोरण आई। दिल जानि अरे मेरा नाह, न त्यजिये नेह कछु अजानि ॥ दि०॥ ॥१॥ अटपटाइ चले धरि कुछ रोष, पसुअनके शिर दे करि दोष ॥ दि० ॥२॥ रंग बिच भयो याथि भंग, सो तो सानो जानो कुरंग ॥ दि० ॥ ३ ॥ प्रीति तनकर्मि तोरत आज, किडं नावे मनमें तुम्ह लाज ॥ दि० ॥ ४ ॥ तुम्ह बहु नायक जानो न 'पीर, विरह लागि जिउ वैरीको तीर ॥ दि ॥५॥ हार ठार शिगार अंगार, "अशन वसन न 'सुहाईलगार ॥ दि०॥६॥ तुज बिन लागे शूनि सेज, नही तनु तेज न हारद हेज || दि०॥ ॥७॥ आओने मंदिर विलसो भोग, बूढापनमें लीजे योग । दि० ॥ ८॥ छोरुंगी में नहि तेरो संग, गइलि चलं जिउं छाया अंग ॥ दि० ॥९॥ इम विलवति गइ गढ गिरनार, देखे प्रीतम राजुल नार ॥ दि०॥ १० ॥ कंते दीर्नु केवलज्ञान, कीधी प्यारी आप समान ।। दि०॥ ११ ॥ मुगति महलमें खेले दोइ, प्रणमें जश उल्लसित तन होइ ॥ दि० ॥ १२ ॥ १ वेदना. २ शत्रुनु बाण. ३ गळामानो हार हीम जेवो अने शंगार अग्निना अंगारा जेवा लागे छे. ४ आहार, वस्त्र. ५ गमे. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy