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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२६ ) ठाण, थवा अवेदी रे || ६ || एवा मभुजोतुं ध्यान, भवियण घरीए रे || करीए आतम कान, सिद्धि वरोए रे ॥ ७ ॥ सेवो थइ सावधान, आलस मोडी रे ॥ निद्रा विकथा दुर, माया छोडीरे ॥ ॥ ८ ॥ मृगपति लेखन पाय, सोवन काया रे || सिद्धारथ कुल तिलक समान, त्रिसलाये जायारे ॥ ९ ॥ सतरो दो वरस आय, पुरण पाली रे | उद्धरोया जीव अनेक, मिथ्या टालो रे ॥१०॥ जीन उत्तम पद सेव करतां सारी रे ॥ रतन लहे गुणमाळ, अति मनोहारी रे ॥ ११ ॥ , || कलश || वीर जीणंद जगत उपगारी | ए देशी । चोवीश जीनेशर भुवन दीनेसर, निरूपम जग उपगांरीजो || महिमा निधि मोटा तुम महियल, तुमची जाउ बलिहारोजी ॥ १ ॥ जनम कल्याणक वासव आवी, मेरु शिखरे नवरावेजी ॥ मानुं अक्षय सुख लेवाने सुर, आदे जीन गुण गायाजी ॥ २ ॥ ग्रहवास छंडो समणा जाया, संजमशुं मन भायाजी | गुणपणी आगर ज्ञान दीवाकर, समोवसरण सुहायाजी || ३ || दुविध धरम दयानिधि माखे, निःकारण ग्रहे हाथेजो || वाणी सुधारस बरसी वसुधा, बावन कीधी नाथेजो ॥ ४ ॥ चोत्रीस अतिशय शोभाकारी, वाणी गुण पांत्रीसजी ॥ अष्ट करम मल दुर करीने, पाम्या सिद्ध अगीसजी ।। ५ ।। चोवीस जीननुं ध्यान धरंतां, लहीए गुण मणी खाणीजी || अनुक्रमे ते महोदय पदवी, पामे पद निरवाणजी || ॥ ६ ॥ तप गच्छ अंबर उदय भानु, तेज प्रतापी छाजेजी ॥ ॥ 19 For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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