SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२१) ॥ श्री मीनाथनुं स्तवन ॥ ॥ देशो ॥ नगपतिनी । जगपति साहेब मल्लि जिणंद, महिमा महिअक गुणनोलो ॥ जगपति दिनकर ज्यु उद्योत, कारक वंशे कुल तिको ॥१॥ जगपति प्रबल पुन्य पसाय, उद्योत नरके विस्तरे ॥ जगपति अंतर महुरत नाम, शातावेदनी ते करे ॥२॥ जगपति सुधारस दृष्टिसाय, तुनमुख चंद्र थको झरे ।। जगपति पडिबोहे भवियण स्वाम, मिथ्या तिमिर दुरे करे ॥३॥ जगपति जगमां झाझ समान, उपगारी शीर सेहरो ॥ जगपति तुम दरसनथी आज, काज सो हवे माहरो ॥४॥ जगपति दीठे तुम मुखकज, दुरित नाठा त्रण माहरे ॥ जगपति दलिद्रपणुं ने दुर्भाग्य पुष्टालंबन प्रभु ताहरे ॥ ५ ॥ जगपति भवोभव संचित जेह, अध नार्ग टली आपदा ॥ जगपति जाचुं नहीं कोशो दाम, मागुं तुम पद संपदा ॥६॥ जगपति थुणोओ धरी मन नेह, ओगणीशमा जीन सुख करु ॥ जगपति नील वरण तनु कान्ति, दीपती . रुप मनोहरु ॥७॥ जगपति जीन उत्तम पद सेव, करतां सवि संपद मले ॥ जगपति रतन नमे करजोड, भावे भवोदधि भय टले ॥८॥ ॥श्री मुनिसुव्रतस्वामीनुं स्तवन ॥ ॥वीर जीणंद जगत उपगारी ॥ ए देशी ॥ मुनिसुव्रत मोन अधिक दिवाजे, महीमा महियळ छाजेनी ॥ त्रिजग वंदित श्रीयुबन स्वामी,गिरुओ गुणनिधि गाजेनी ॥ मुनि०॥१॥वड वखत पर अतिशय पारी, कल्पातित आचारमी ॥ चरण करणभुत प. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy