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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१११) मुवनमां धरता थकां ।। सा० ॥ प्रगटे सहज स्वरुप ॥ गु० ॥५॥ तृष्णा ताप समावतो ॥ सा० ॥ शीतलताये चंद ॥ गु० ॥ तेजे दीनमणी झीपतो ॥ सा ॥ उपशम रसनो कंद ॥ गु० ॥ ६ ॥ कंचन कान्ति सुंदरु ।। सा० ॥ कान्तिरहित कीरपाठ ॥ गु० ॥ श्रीन उत्तम पद सेवतां । सा० ॥ रतन लहे गुण माल |गु०॥७॥ ॥श्री चंद्रप्रजुजोर्नु स्तवन ॥ ॥तुमे बहु मीत्रीरे साहिबा (अथवा) कर्मन छुटेरे माणी ।। ए देशी ॥ श्री चंद्रप्रभु जीन साहेबा, शरणागत प्रतिपाल । दरभन दुरलभ तुम तणु, मोहन गुण मणीमाल ॥ श्रीचंद्र प्रभु जीन साहेवा ॥ १ ॥ साचा देव दयाळवा, सहजानंदीनुं धाम ॥ नामे नव निध संपजे, सीझे वांछित काम ॥ श्री० ॥ २॥ ध्येय पगेरे ध्यायता, ध्याता ध्यान परमाण ॥ कारणे कारज नीपजे, एहवी भामय वाण ॥श्री०॥३।। परमातम परमेसरु, पुरसेतिम परधान ।। सेवक मुणीए विनति, कीजे आप समान ॥ श्री० ॥ ४ ॥ श्रदा भासन रमणता, आणी अनुभव अंग ॥ निरागीरे नेहो, होये गवळ अभंग ।। श्री० ॥ ५॥ चंद्रमभु जीन चित्तयो, मकुं नहीं मीनराज ॥ मन तनु घर माहे खेवीओ, भक्ते में सात राज ॥श्री. ॥६॥ गुण निधि गरिव निवाज छो, करुणा निधि कीरपाल ।। वनविनय कवि राजनो, रतन कहे गुणमाळ ॥ श्री० ॥७॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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