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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०९) ॥ श्री सुमतिनाथ स्तवन । ॥ मोहनगारा हो राजरुडा, मारा सांधली मुगुणा मुडा ।। ए देवी । मुमति जिनेसर साहिबोजी, सुपति तो दातार ॥ वडगति मारग चुरताजी, गुणमणीनो भंडार के। जीनपति जुक्ते लाल जाणी वंदे जे गुणखाणी ॥१॥ ए आंकणी ॥ सहजानंदी साहेबा जी, परम पुरुष गुरधाम ।। अक्षय सुखनी संपदाजी, प्रगटे जेहने नाम के । जीनपति० ॥२॥ नाथ निरंजन जगधणीजी, नीरागी भगवान ॥ जग बंधव जग वत्सलुजी, कीजे सदंतर ध्यान के । जीन० ॥ ३ ॥ ध्यान भुवनमा ध्यावतांजी, होवे आवम शुद्ध ॥ संवर साधे निर्जराजी, अविरतिनो करे रुध के ॥ जीन० ॥ ४॥ ज्ञानादि गुण संपदाजी, प्रगटे झाक झमाल ॥ चिदानंद मुख अनुभवीजी, लेवे गुण मणी माल के ॥ जीन० ॥ ५॥ पंचम जीन सेवता धकांजी, पाप पंक क्षय जाय ॥ द्रव्य भाव भेदे करीजी, कारज सघलां थाय के ॥ जीन० ॥ ६ ॥ मंगलामुत मुहकरुजी, कुळ मांहे तिलक समान ॥ पंडित उत्तमविजय तणाजी, रतन धरे तुम ध्यान के ।। जीन० ॥७॥ ॥श्री पद्मप्रभस्वामीनुं स्तवन ॥ ॥ रामचंद्र के बाग चंपो मोही रह्योरी ॥ ए देशी ॥ पद्म प्रभु जीनराज, सुरनर सेव करेरी ॥ पुष्टालंबन देव, समरे दुरित For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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