SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चित्त चोखे, उजमणुं करो सारसी । परिमा भरावा संघ भक्ति करो, ए विधि शास्त्र मोझारजी ॥३॥श्रेणिक सत्यकि सुळसा रेवति. देवपाळ अवदासजी । स्थानक तप सेवा महिपाए, यया नगमाहि विख्यांतजी ॥ आगम विधि सेवे ज तपीया, धन्य धन्य "तस अवतारजी। विघ्न हरे तस शासनदेवी, सौभाग्य सक्ष्मी दातारजी ॥ ४॥ बीजनी स्तुति. जंबू द्वीपे अहोनिश दोपे, दोय सूर्य दोय चंदाजी; तास विमाने श्री ऋषभादिक, शाश्वत नाम जिणंदाजी ॥ तेह भणी उगते शशि नोरखी, प्रणमे भवीजन वृंदाजो; बीज आरोपो ध. मर्नु बीज, पूजो शांति निणंदाजो ॥ १ ॥ द्रव्य भाव दोय भेदे पूजो, चोवीशे जिन चंदाजी; बधन दोय दूर करीने, पाम्या पर. माणंदाजी ।। दुष्ट ध्यान दोय मत मसंगज, भेदन मत्त मयंदाजी॥ बीज तणे दिन ते आराधे, जेम जंगम । चिरनंदाजी ॥ २ ॥ द्विविध धर्म जिनराज प्रकाशे, समवसरण मंडाणजीः निश्चय ने व्यवहार बेहुथु, आगम मधुरी वाणीनी ॥ नरक तिर्यंच गति दोय न होवे, बीज ते ज आराधेनी, द्विविध दया उस स्थावर केरी, करतां शिव सुख साधेजी ।। ३ ।। बीज चंद पेरे भूषण भूषित, दीपे निलपट चंदाजी; गरुड यक्ष नारी मुखकारी निर्वाणी सुख कंदानी ।। धीज तो तप करतां भवीने, संमकित सांनिध्य कारीजी; धीरविमळ शिष्य कहे नया संघना विना निवारीजी ॥४॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy