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॥ चैत्यवंदन ॥ ॥प्रणमुं श्री गुरुराज आज, जिनमंदिर केरो॥ पुन्य भणी करस्युं सफल, जिन वचन भलेरो ॥१॥ देहरे जावा मन करे, चोथ तणुं फल पावे ॥ जिनवर जुहारवा, उठतां छठ पोते आवे ॥ २॥ जावा मांडयु जेटले ए, अट्ठम तणो फल जोय ॥ डगलं भरता जिन भणी, दशम तणो फल होय ॥३॥ जाइस्युं जिनहर भणी, मारग चालंता ॥ होवे द्वादशतएं, पुन्य भक्के मालंता ॥ ४॥ अर्ध पंथ जिनवर भणी, पनरे उपवास ॥ दीतुं स्वामितणुं भुवन, लहिए एक मास ॥ ५॥ जिनहर पासे आवता ए, छमासि फल सिद्ध॥ आव्या जिनहर बारणे, बरसित फल सिद्ध ॥६॥ सो बरस उपवास पुन्य, परदक्षणा देतां ॥ सहस वरस उपवास पुन्य, जिन नजर जोतां ॥७॥ भावे जिनहर जुहारीए, फल होवे अनंत ॥तेहथी लहिये सों गुणो, जो पुजो भगवंत ॥ ८॥ फल घणो फुलनी माल, प्रभु कंठे ठवता ॥ पार ना आवे गित नाद, केरा फल भणतां ॥ ए॥ जिन पुजी पूजा करे ए,
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