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थ्थस्स जाणी ॥ जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां होय सुख खाणी॥५॥ इति श्रीविसस्थानक नाम चैत्यवंदन॥
॥ वीसस्थानक तपना काउसगर्नु चैत्यवंदन ॥ - चोवीस पन्नर पीस्तालीसनो, छत्रीशनो करीए ।। दस पचवीस सतावीसनो, काउसग्ग मन धरीए ॥१॥ पंच सडसठि दस वली, सितेर नव पणावत ॥ बार अडवीस लोगसतणो, काउसग्ग धरो गुणीस ॥ २ ॥ वीस सतर इगवन्न, द्वादशन पंच ॥ इणीपरे काउसम्ग जो करे, तो जाए भव संच ॥३॥अनुक्रमे काउसग्ग मन धरो, गुणी लेज्यो वीस ॥ वीस थानक इम जाणीए, संक्षेपथी लेश ॥ भाव धरी मनमां घणोए, जो एक पद आराधे ॥ जिन उत्तम पद पद्मने॥ नमी नीज कारज साधे ॥५॥ इति संपूर्णम् ।।
॥ अथ तीर्थकरनी राशीनुं चैत्यवंदन ॥ ॥शांति नमी मल्ली मेष छे ॥ कुंथु अजित वृषभांति ॥ संभव अभिनंदन मिथुन ॥ धर्म करक सिंह सुमती ॥१॥ कन्या पद्म प्रभु नेमविर ।। पास सुपास तुलाय ॥ शशी वृंश्चक धन रुषभदेव ॥ सुविधि शीतल जिनराय ॥ मकर सुवृत श्रेयांसने, बारमा
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