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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achan Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५७ वछर लक्ष ग्यारो ॥१॥ एसी सहस संबच्छर भूतल, सेव्यो स्वामी हीयडे निरमल, वासग विसह स्वामी ॥ पछे पूज्यो ते परमेश्वर, सातमास नव दिवस निरंतर, दशरथ नंदन रामो ।। केतो ए काल प्रथम हरी ध्यायो, द्वारिका नगरी पाछल आयो, पूज्यो देव मो. रायो ॥ द्वारिका दाह जल रहीओ, सागरदत्त शेठे संग्रहीओ, कांति नगर मोझारो ॥२॥ नागार्जुन जोगी ते लीयो, सेढी तट तेहनो रस सीधो, तुं वीण अवर न वीरो ॥ उवट नदीय वहे वरसाले, तुम उपर घणा वेबु वाले, गाय झरे सीर खीरो ॥ अभयदेव सूरी तिहां जाण्यो, भूय भीतरथी उपर आण्यो, ते तस दीधी देहो ॥ थंभण पुरवर प्रसादे बेठो, नयणानंदण जग सहु दीठो, निला वन जिम मेहो ॥३॥ गुजरधर जव जवणि धस कीय, खंभनगर तें तैयअलंकीय, पुहविरो प्रगट प्रमाणो ॥ आद तुमारी जग कुण जाणे, मतवीण माणस कासुंअ वखाणे, डंपीण सहज अयाणो ॥ कामधेनुं तिहां पत्तधरंगण, करयल चढीयो कर चिंतामण, फलीयो अमर वीसालो ॥ देव दयालु For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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