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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे समकित दष्टि भावियां, संवेग सुधारस सेवीया॥ नय विमल कहे ते अनुसरो, अनुभव रस साथे प्रीतिधरो ॥४॥ । अथ सातमनी स्तुति ॥ ॥चंद्रप्रभु जिन ज्ञान पाम्या, वळी लह्या भव. पार ॥ महसेननप कुल कमल दिनकर, लखमणा मात मल्हार ॥ शशिअंक ससिसमगौर देहे, जगत जन सिणगार ॥ सप्तमी दीने तेह नमतां, हुवे नित्य जयकार ॥१॥ धर्म शांति अनंत जिनवर, विमलनाथ सुपास ॥ च्यवन जन्मने शिवपद, पामीया दोइ खास ॥ एम वर्तमान जिणंद केरा, थया सात कल्याण ॥ ते सातम दीन सात सुखनु, हेतु लहीए जाण ॥२॥ जिहां सात नयनुं रुप लहीये, सप्तभंगी नाव ॥ जे सात प्रकृतिना क्षय कर्याथी, लहे क्षायिक भाव ॥ ते जिनवर आगम सकल अनुभव, लहो लीलविलास ॥ जिम सात नरकनुं आयु छेदी, सातभय होवे नास ॥३॥ श्री चंद्रप्रभ जिनराय शासन, विजयदेव विशेष ॥ तसदेवी ज्वाला करे सांनिध, भविक जन For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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