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वानो दिन अनोपम जाणी, समकित गुण आराधोजी। सकल जिणेसर ध्यान धरीने, मनवंछीत फल साधोजी ॥२॥ एक कृपारस अनुभव संयुत, आगम रयणनी खा. णजी ॥ भविक लोक उपकार करवा,भाखेश्री जिनवारणीजी ॥ जिम मीडां लेखे नवि आवे, एकादिक विj अंकजी ॥ तिम समकित विण पक्ष न लेखे, प्रतिपद सम सुविवेकजी ॥ ३ ॥ कुंथु जिनेसर सांनिध्यकारी, सेवे गंधर्व यक्षजी ॥ वंछित पूरे संकट चूरे, देवी बाला प्रत्यक्षजी ॥ संवेगी गुणवंत महायश, संयम रंग रंगीलाजी ॥ श्री ज्ञान विमल कहे श्री जिननामे, नित नित होवे लीलाजी ॥ ४॥
॥ अथ वीजनी स्तुति ॥ __॥ बीज दीने धर्मनुं बीज आराधीए, शीतल जिनतणी सिद्धिगति साघीए ॥ श्रीवत्स लंछन कंचन सम तनु, दढरथ नृप सुत देह नेउ घणुं ॥१॥ अर अभिनंदन सुमति वासुपूज्यना, च्यवन जनम ज्ञान ज थया एहना ॥ पंच कल्याणक बीज दिने जाणीए, कालत्रण चोवीसी मन आणीए ॥२॥
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