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॥ ढाल ॥१॥ भाइ हवे माल पेरावो ॥ ए. देशी ॥
श्री रुषभजी केवल पाम्या, सुरनर आवि सिर नाम्या ॥ भिन्न मुहरते सिवपद लहियो, मरुदेवाए मारग वहियो ॥४॥ आदित्य जसा प्रमुख जे राय, ते रुषभ वंसि केहवाय ॥ चौदलाख त्रिखंडना स्वामि, पाम्या सिवतस नमु सिरनामि ॥५॥ पछे पाट जे एक उत्पन्न, सर्वारथ सिद्ध निपन्न | चौदलाख पाट सिवजाय, पछे सर्वारथ सुर थाय ॥६॥ चौदलाख ने अंतरे एम, जिहां लगे सुरधर जयो प्रेम ॥ ते एकेका असंख्याता थाय, पछे चौदलाख सिव जाय ॥ ७ ॥ पछे पाट बेसर्वारथे, पछे चौदलाख सिव जाते ॥ इम ते बेबे असंख्याता, इम त्रिण त्रिण विख्याता ॥८॥ च्यार च्यार असंख्याता कहिये, इम जाव पंचासे लहिये ॥ निजरत्न त्रयिना भोगि, थया रुपातित अजोगि ॥ ९ ॥
॥ ढाल ॥ २ ॥
॥सर्वारथ सिधे, चौद लाख हवे पाट ॥ पछे शिवए जाए, नहि त्रिजी तिहां वाट ॥१०॥ इम
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