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अलगा थया मुज थकि एहने, उपजसेरे केवल निय अंगके ॥ गौतमरे गुणवंता ॥ १॥ अवसर जाणि जिनवरे, पुछिया गोयम स्वाम ॥ दोहग दुखिया जी. वने, आरिये आपण काम ॥ देव सर्मा बंभणो, जइ बुझवोरे, ओणे ढुंकमे गामके ॥ गौ०॥ २॥ सांभली वयण जिणंदमुं, आणंद अंग न माय ॥ गौतम बे कर जोडि, प्रणम्या वीर जिनना पाय ॥ पांगरया पूरव प्रीतथी, चपनांणिरे मनमां निरमायके ॥ गौ०॥३॥ गौतम गुरु तिहां आविया, वंदाविओ ते विप्र ॥ उ. पदेश अमृत दीधलो, पीपलो, तिणे क्षिप्र ॥ धसमस करतां बंभणे, बारि वागीरे थइ वेदन विपके ॥ गौ० ॥४॥ गौतम गुरुना वयणलां, नवि धर्या तिणे कान॥ ते मरी तस शिर कृमि थयो, कामनीने एक तान ॥ उठिया गोयम जाणिओ, तस चरीयोरे पोताने ज्ञान के ॥ गौ०॥५॥
॥ ढाल सातमी ॥ राग रामगिरि ॥ ॥ चोसठ मणनां ते मोति झगमगेरे, गाजे गुहिर गंभिर सिरेरे । पुरां तेत्रीस सागर पूरवे रे, नादे
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