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Achar
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सयल लिधुं । मु०॥४॥ कर्मचंडाल गोसाल संगम सुरो, जीणे जीन उपरे घात मंडयो ॥ एवडो वयर तें पापिया सें कयों, कर्म कोडि तुहिज सबल दंडयो ।मु०॥ ५॥ सहज गुण रोषिओ नामे चंडकोषिओ, जीनपदे स्वान जिम जेह विलगो ॥ तेहने वुझवि उद्धों जगपति, किधलो पापथी आर्तहें अलगो ॥ मु०॥६॥ वेदयामा त्रियाम लगें खेदियो, भेदियो तुझ नवि ध्यान कुंभो ॥ शूलपाणि अन्नाणि अहो बुझव्यो, तुझ कृपा पार पामे न संभो ॥ मु० ॥७॥ संगमे पिडीओ प्रभु सजल लोयणे, चिंतवे छटश्ये किम एहो ॥ तास उपरें दया एवमि शी करी, सापराधे जने सबल नेहो ॥ मु०॥ ॥ इम उपसर्ग सहेतां तरणि मित वरस, सार्द्ध उपर अधिक पक्ष एके ॥ वीर केवल लडं कर्म दुःख सवि दह्यु, गहगह्यं सुर निकर नर अनेके ॥ मु० ॥ ९ ॥ इंद्रभुति प्रमुख सहस चउदश मुनि, साहुणी सहस छत्रीस विहसी ॥ ओगणसठ सहस एक लाख श्रद्धालुआ, श्राविका त्रिलख अठार सहसी ॥ मु०॥१०॥ इम अखिल साधु
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