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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ लका तस नारि ॥ च०॥ तस बेटी गुण मंजरी रोगणी, वचने मुंगी असार ॥०॥ भा०॥ ५॥ चउ. नांणी विजयसेन सूरीसरु, आव्या तिण पुरजांम ॥ ॥०॥ राजा शेठ प्रमुख वंदन गया, सांभली देशना ताम ॥ च० ॥ भा० ॥ ६॥ पुछे तिहां सिंहदास गुरु प्रत्ये, उपन्यो पुत्रीने रोग ॥ च० ॥ थइ मुंगी वली परणे को नही, एह स्या कर्मना भोग ॥ च० ॥ ना० ॥७॥ गुरु कहें पुरव भव तुमें सांभलो, खेटक नयर वसंत ॥ च०॥ साह जिनदेव अच्छे व्यवहारियो, सुंदरी धरणीनो कंत ॥ च० ॥भा०॥८॥ बेटा पांच थया छे तेहने, पुत्री अतीभलीच्यार ॥ च०॥ भणवा मुक्यारे पांचे पुत्रने, पण तें चपल अपार॥०॥भा०॥९॥ ॥ ढाल बीजी ॥ सीरोहीनो सेलोहो के उपर योधपूरी ॥ए देशी॥ ते सुत पांचहो के पठन करे नहीं, रमत करतांहो के दीन जाये वही ॥ सीखावें पंडितहो के छात्रने रीस करी, आवी मातानेहो के कहे सुत रुदन करी ॥१॥ मात अध्यारु हो के अमने मारे घj, काम अमारे हो के नहि जणवा तणु ॥ सुखणी माता For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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