________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३३३
पतिमां भरतेसर भांख्यो || वा० ॥ देवमांहे सुरेंद्र रे ॥ तीरथमां शेत्रंजो दाख्यो, ग्रहगणमां जेम चंद्र रे ॥ पजु० ॥ ० ॥ भ० ॥ ३ ॥ दसरा दीवाळीने वळी होळी ॥ वा० ॥ अखात्रीज दीवासो रे ॥ बलेव प्रमुख बहुला छे बीजा, पण नहि मुक्तिनो वासो रे || पजु० ॥ तु० ॥ भ० ॥ ४ ॥ ते माटे तमे अमार पळावो || ॥ वा० ॥ अठ्ठाइ महोच्छव कीजें रे || अहम तप अधिकांइयें करीने, नरजव लाहो लीजें रे ॥ पजु० ॥ तु० ॥ ज० ॥ ५ ॥ ढोल ददामा भेरी नफेरी | ॥ वा० ॥ कल्पसूत्रने जगावो रे || झांझरना झमकार करीने, गोरीनी टोळी मळी आवो रे | पजु० ॥ तु० ॥ भ० ॥ ६ ॥ सोनारूपाने फुलडे वधावो ॥ वा० ॥ कल्पसूत्रने पूजो रे ॥ नव वखाण विधियें सांभलतां, पापमेवासी धूजो रे ॥ पजु० || तु० ॥ ज० ॥ ७ ॥ एम अठाइनो महोत्सव करतां ॥ वा० ॥ बहु जीव जगउद्धरया रे ॥ विबुध विमळ वर सेवक एहथी, नवनिधि रुद्धि सिद्धि वरया रे || पजु० ॥ तु० ॥ भ० ॥ ८ ॥ इति ॥
For Private And Personal Use Only