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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९८ अछे रे, कारण जे व्यवहार ॥ साचो रे साचो रे, कारज साचो ते सहि रे ॥ १०॥ निश्चय नय मति गुरु शिष्यादिकको नहि रे, करे न भुंजे कोय ॥ तेहथी रे तेहथी रे, उन्मारग ते देशनारे ॥ ११ ॥ व्यवहारे गुरु शिष्यादिक संभवे रे, साचो ते उपदेश ॥ भाख्यो रे भाख्यो रे, भाष्ये सुत्र व्यवहारमें रे ॥१२॥ ॥ ढाल थीजी ॥ गुण वेलडीया ॥ ए देशी ॥ ॥ कोइक विधि जोतां थकां रे, छांडे सवि व्यवहार रे ॥ मन वसीया ॥ न लहे तुज वचने कह्यं रे, द्रव्यादिक अनुसार रे ॥ गुण रसीया ॥१॥ पाठ गीत नृत्यनी कला रे, जिम होय प्रथम अशुद्ध रे ॥मन०॥ पण अभ्यासे ते खरी रे, तेम क्रिया अविरुद्धरे ॥ ॥गुण०॥२॥ मणि शोधक शत खारना रे, जिम पुट सकल प्रमाण रे । मन० ॥सर्व क्रिया तेम योगने रे, पंच वस्तु अहिनाण रे ॥गुण०॥३॥ प्रीति भक्ति योगे करी रे, इच्छादिक व्यवहाररे ॥मन०॥ हीणो पण शिव हेतु छे रे, जेहने गुरु आधार रे ॥ गुण ॥ ४ ॥ विष गरल अन्योअन्य छे रे, हेतुअमृत जेम पंच रे ॥मन०॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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