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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ साचा । जेहमां भाव अशुद्ध छे तेहना, एक काचें सवि काचा रे ॥ १२ ॥ जि०॥ दशवैकालिके दूषण दाख्यु, नारी चित्रने ठामे ॥ तो किम जिनप्रतिमा देखीने, गुण नवि होय परिणामे रे ॥ १३ ॥ जि०॥ रुचकद्वीपें एक डगले जातां, पडिमा नमीय आणंदे॥ आवतां एक डगले नंदीसरे, बीजें इहां जिन वंदे रे ॥ १४ ॥ जि० ॥त्री गतिए भगवई भाखी, जंघा. चारण केरी ॥ पंडग वन नंदन इहां पमिमा, ऊर्ध्व नमें घणेरी रे ॥ १५ ॥ जि० ॥ विद्याचारण ते एक डगले, मानुषोत्तरे जाय ॥ बीजे नंदीश्वर जिनप्रतिमा, प्रणमी प्रमुदित थाये रे ॥ १६ ॥ जि० ॥ तिहांथि पडिमा वंदण कारण, एक डगले इहां आवे॥ अर्ध्वपणे जातां बिहुं डगलां, आवतां एक स्वभावें रे ॥१७॥ जि०॥ शतक वीसमें नवमें ऊद्देशे, प्रतिमा मुनिवर वंदी ॥ एम देखी जे अवला भांजे, तस मति कुमति फंदी रे ॥ १८॥ जि.॥ आलोअणY ठाण कर्तुं जे, ते प्रमाद गति केरो॥ तीर गति जे यात्र विचालें, रहतो खेद घणेरो रे ॥ १९ ॥ जि०॥ करी गोचरी जिम For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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