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निज परचक्र भर्म ॥ सा० ॥ पर्व ॥ ८॥ धर्मथी सुर सांनिध्य करे हो लाल, धर्म पाली पाले राज ॥ कोई सद्गुरु संजोगथी हो लाल, थया त्रणे ऋषिराज ॥ साहेबजी ॥ सा० ॥ पर्व० ॥९॥ ॥ ढाल ॥ ८ ॥ टुंक अने टोडा विचरे रे ॥ ए देशी ॥
त्रणे नरपति आदर्यो रे चोखो चारित्र भार ॥ संजम रंग लाग्यो रे ॥ तप तपता अति आकरारे, पाले निरतिचार ॥ संयम० ॥१॥ ध्यानबले खेरु कर्या रे, घनघाति जे च्यार ॥ संयम ॥ केवल ज्ञान लही करी रे, विचरे महीयल सार ॥ सं० ॥२॥ श्रेष्ठी सुर महिमा करे रे, ठाम ठाम मनोहार ॥संजम०॥ देशना देता केवली रे, भाखे निज अधिकार ॥सं०॥ ॥३॥ पर्व तिथी आराधीये रे, भवियण भाव उल्हास ॥ सं० ॥ इम महिमा विस्तारीनेरे पाम्या शिवपुर वास ॥ सं० ॥४॥ बारमा देवलोकथी चवीरे, श्रेष्ठी सुर थया राय ॥ सं०॥ महिमा पर्वनो सांभली रे, जाति स्मरण थाय ॥ सं०॥ ५॥ संजम ग्रही केवल
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