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कारतो॥ दोष शेष पछी रुझवाए, करे औषध उपचार तो ॥१॥ अतिचार व्रण रुझवाए, काउस्सग्ग तिम होय तो॥नवपल्लव संयम हुवे ए, दुषण नव रहे कोय तो॥२॥ कायानी स्थिरता करी ए, चपल चित्त करो ठामतो ॥ वचन जोग सवि परिहरिए, रमीए आतमराम तो॥ ३॥ श्वास उश्वासादिक कह्योए, जे सोले आगार तो ॥ तेह विना सवि परिहरो ए देहतणा व्यापार तो ॥ ४ ॥ आवश्यक ए पांचमुं ए, पंचम गति दातार तो ॥ मनशुद्धे आराधीये ए, लहीए भवनो पार तो ॥५॥
॥ ढाल ॥६।। वालम वहेलारे आवजो ॥ ए देशी ॥
॥सुगुण पच्चख्खाण आराधजो, एह छे मुक्तिनुं हेतरे ॥ आहारनी लालच परिहरो, चतुर चित्त तुं चेतरे ॥ सु० ।। १॥ शल्य काढयुं व्रण रुजव्युं, गई वेदना दुररे ॥ पछी भला पथ्य भोजन थकी, वधे देह जेम नूररे ॥ सु० ॥ २ ॥ तिम पडिक्कमण काउस्सग्गथी, गयो दोष सवी दुष्टरे ॥ पछी पचखाण गुण धारणे, होय धर्म तनु पुष्टरे ॥ सु०॥ ३॥ एहथी कर्म
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