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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६६ ) 1 जोयण उत्तंगे । दश सहस सम पिडुलारे । चिदिशि सोलसोहे दधिमुख गिरि । तिहां प्रासादसु विमला रे ॥ ए ॥ नंदी० ॥ । वाविवाविनें अंतर विदिशें । रतिकर पर्वत रूमारे । दोय दोय संख्या जगदीसे । कह्या नहीं एकूमारे ॥ १० ॥ नंदी० ॥ जोयण सहस मानदश ऊंचा । दशदश सहस विस्ता रारे । कलरिस्रमसंताप जगतगुरु । ए निश्चय निरधारारे ॥ ॥ ११ ॥ नंदी० ॥ ते ऊपर प्राशाद सतोरण | अंजन गिरि परिमाणेरे । जिन प्रतिमा नी संख्या तेहिज । श्री जिनराज वखारे ॥ १२ ॥ नंदी० ॥ इम प्रासाद प्रभूना बावन | नंदी सरवर घीपेरे । व्य जाव विधिपूज करतां । मोह महा जम जीपेरे ॥ १३ ॥ नंदी० ॥ प्रवचन सार उधार प्रकरणें । जीवानिगमें जाणोरे । इम अधिकार से ग्रंथ अनेके । इहां संका मत आणोरे ॥ १४ ॥ नंदी० ॥ जिम सुरपति विरचे तिहां पूजा | ते अनुभव इहांस्यावोरे । ध्यावो जिमपावो परमातम । जैन चंद्रगुण गावोरे ॥ १५ ॥ इति श्रीनंदीसर द्वीप स्तवनं ॥ ॥ अथ निर्वाण कल्याणक स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ मारग देशक मोनोरे । केवल ज्ञान निधान । जावदया सागर प्रभूरे । पर उपगारी प्रधानोरे || १|| वीर प्रभु सिद्धथया । संघ सकल धारोरे । दिवइण जरतमां । कुण करस्ये उपगारोरे ॥ २ ॥ वीर० ॥ नाथ विहूणी सेन्य जूंरे । वीर विहूपोरे संघ | साधेकुण आधारथी रे । परमानंद अनंगोरे ॥ ३ ॥ वी० ॥ मात विदुषा बालज्युंरे । अरहां परां श्रथमाय । वीर विहूणा जीवकारे । आकुल व्याकुल थायेरे ॥ ४ ॥ वी० ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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