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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Ach (५५) संसार रे । अनंत नवाँना पापथी। बूटे जीव निरधार. रे ॥ गौ ॥ ३० ॥ तप हुँती पापी तस्या । निस तरीयो अरजुन माल रे ॥ गौ० ॥ ३१ ॥ तपना फल सूत्रे कह्या । पञ्चक्खाण तणा दश नेद रे । अवर नेद पिण वे घणा । करतां दे त्रय वेद रे ॥ गौ० ॥ ३२ ॥ ( कलश ) पच्चक्खाण दशविध फल प्ररूप्या महावीर जिण देव ए । जे करे नवियण तप अखंमित तासु सुर पय सेव ए । संवत्त निधि गुण अश्व शशि वलि पोश सुद दशमी दिने पदमरंग वाचक सीस गणिवर रामचंड तप विधि लणें ॥ गौ० ॥ ३३ ॥ इति दश पञ्चक्खाण फल गम्नित वृद्ध स्तवनम् ॥ ॥ अथ श्रीऋषभ जिन स्तवन लिख्यते ॥ ॥ ढाल ॥ पाटोधर पाटीये पधारो एदेशी ॥ सुण' सुण सेजुंज गिर स्वामी । जगजीवन अंतरजामी । हुँतो अरज करुं सिरनामी । कृपा निधि वीनती अवधारो ॥१॥ जवसायर पार उतारो । निजसेवक वान वधारो । कृपानिधि वीनती अवधारो। प्रनु मूरति मोहन गारी । निरख्यां हरखे नर नारी । जालं वारी हुँ वार हजारी ॥ कृ० ॥॥हिव किसिय विमासण की जे । मुफ ऊपर महिर धरी जे । दिल रंजन दरसन दीजे ॥ कृ० ॥३॥ आज सयल मनोरथ फलिया । जव नवना पातिक टलिया । प्रनु जो मुझसैं मुख मिलिया ॥ कृ ॥४॥ समस्यां संकट टलि जाये । नव नवनित मंगल थाये । मुझ आतम पुण्य नरायें ॥ कृ० ॥ ५ ॥ कर जोमी वीनति कीजे । केसर चंदन चरची जे । दिन धन For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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