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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४५) दिस लीन ॥ १३ ॥ श्रीसुजात जिन पांचमो । जो स्वयं प्रजू ईस । रिषजानन जिन सातमो । समरी जे निसदीश ॥१४॥ दी० ॥ अनंत वीरज जिन बाग्मो। ए च्यारे जिनराय । पूरब धातकी खंझमें । महाविदेह रहाय ॥१५॥दी॥ पहिली चिहुं जिननी परे । विजय नगर दिशि गण । तिण हीज नामें अनुक्रमें । विजय मेरु अहि नाण ॥ १६॥दी॥ नवमो सूर प्रन्नु नमुं । दशमो देवविशाल । श्म वज्रधर ग्यारमो । त्रिकरण नमुं त्रिहुंकाल ॥ १७॥ दी० ॥ बारमो चंजानन जिन । पश्चिम धातकी मांहि । विचरे च्यारे जिणवरा । अचल मेरु उनहि ॥ १० ॥ दी० ॥ एहवो धातकी खम ए । परददाणा परकार । अउ लख जोयण विटीयो समुज कालो दधि सार ॥ १५॥ दी ॥ ॥ ढाल ३॥ पहिलि प्रतिमा एकणमासनी० ए चाल ॥ ॥ कालो दधिने पेलेपार ए । वीट्यो चूमी जेम विचाल ए। सोलेह लख जोयण विसतार ए । दीप पुष्कर वर अति सुखकार ए ॥ उबालो ॥ सुखकार पुष्कर दीप त्रीजो तेहनें आधे पगे । विचपड्यो परबत मानुषोत्तर मनुष्य क्षेत्र तहां लगे। तिण आधिकर आउ लाख । जोयण अरध पुष्कर एम ए। तिहां करम नूमी उए । कही जे धातकी खंम जेम ए ॥२०॥ ॥ ढाल ॥ आधे पुष्करनें पूरब दिसे । मंदर नामें मेरु तिहां वसे । पश्चिम विमुमाली मेरु ए । इहां किण इतरो नामें फेर ए ॥ नबालो ॥ फेर ए इतरो इहां नामें अवर गमें को नहीं। एक एक मेरे तीन तीने करम चूमी तिहां कही । इम जरत For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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