SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४०) घृत खंग जीमनें वमें । सरस रस पाय वलि स्वाद केहवो गमें। चौथ पंचम के गण चढिने पड़े। किणहि कषाय वसि आय पहिले अमे ॥ ७॥ रहे विच एक समयादि षट् आवली । सहीय सासादने स्थिति इसी सांजली। हिव इहां मिश्र गुणगण त्रीजो कहे । जेह नस्कृष्ट अंतर महुरत लहे ॥ ए॥ ॥ ढाल ३ ॥ बेकर जोडीताम ऐहनी ॥ ॥ पहिला चार कषाय । शम करि समकिती । केतो सादि मिथ्या मती ए । ए बेहिज लहे मिश्र । सत्य असत्य जिहां । सरदहणा बेचं ती ए ॥ १० ॥ मिश्र गुणालय मांहि । मरण हे नही । आज बंध न पके नवो ए । केतो लहे मिथ्यात। के समकित लहे। मति सरखी गतिपर नवे ए॥११॥ च्यार अप्रत्याख्यान । उदय करी लहे । मति विण किहां समकित पणो ए। ते अविरत गुणगण । तेतीस सागर । साधिक थिति एहनी जणो ए ॥ १२॥ दया उपशम संवेग। निर्वेद आसता । समकित गुण पांचे धरे ए । सहु जिन वचन प्रमाण । जिन सासन तणी। अधिक अधिक उन्नति करे ए ॥ १३ ॥ केईक समकित पाय । पुद्गल अरधतां । उत्कृष्टा नवमे रहे ए। केईक नेदी गंठि। अंतर महुरतें । चढतें गुण सिव पद लहे ए॥ १४ ॥ च्यार कषाय प्रथम । त्रिण वलि मोहनी । मिथ्या मिश्र सम्यक्तनी ए साते प्रकृति जास । परही नपसमें । ते उपसम समकित धणी ए ॥ १५ ॥ जिण साते क्य कीध । ते नर दायकी । तिणहीज लव For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy