SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३७) थल खचर नुयंग इ पण इजिय तिरि अमयाल ए । घम्मादि साते नरक पुढवी नारकी तिहां सात ए । ते चवद नेदे करी जाणो पजात्तय अपऊत्त ए॥२॥ ढाल ॥ पनरह विधरे सुरगण परमा हम्मिया । किलविषियारे विविध करम ते निम्मिया । जंनिय दस रे नव लोकांतिक जाणिये । सोलह विधरे व्यंतरदेव वखाणिये ॥ उबालो ॥ वखाणिये दस विध नुवन पतिना तार रवि शशि रिषि गाहा । चर श्रिर दसे विध जोइसी सुर वखाण्या जिणवर जिहां । बारह वैमानिक पण अणुत्तर नव ग्रेवे एके नव लण्या । पजात्त अपजात्तग अगणुं अधिक सत संख्या गिण्या ॥ ॥ ढाल २॥ मेघ आगम सही ए देशी॥ ॥ पंच नरत वलि ऐरवत पंच ए पंच विदेह वर नूमिका ए। क्षेत्र ए पनरह करम नूमि जाणीये असि कसि मसि हि आजीविका ए । हेमवत खेत्र वलि तिम हरिवर्ष, रम्यक ऐरण्यवत सही ए । मेरु पिण पाखती चारि चारि खेत्र ए दस कुरु अकरमक जूमि कही ए॥४॥ हिमगिरि सिहरीय दाढ चिहुंआरिअ लवण समुझ मांहि विस्तरी ए । सात सात अंतर दोय पासे दीप उप्पन्न अंतर धरी ए । दोसे नेद श् आगला जांणिये मणुय पङत्त अपजत्तया ए । एकसो एक समुर्छिम नेद ए । तीनसे तीन मणु आ या ए ॥५॥ ॥ ढाल ३ ॥ हिव जनम्या जगगुरु जगत्र । हुवो जयकार ए चाल ॥ ॥ पणसय तेस विध जीव सहू ने एह अलिहय आदिक For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy