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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४ ) अपराधकों हमा महिमाश्रीजी तथा श्रीमती जवेरश्रीजी के समुपदेश श्रेष्ठ है नाम जिसका और सद्गुणोंकी रागवाली श्री सुरतशहर में रहने वाली श्रीमती सुश्राविका श्री कमलाबाईका दियाहुया आर्थिक सहाय करके और जामनगर में रहनेवाली ने दीक्षा ग्रहणवाली श्रीमती जमावबाईका दिया दुवा आर्थिक सहाय करके श्री जैन प्राचीन पुस्तकोछार फन्मके कार्यवाह - कोंने प्रगट करके उपवाया और इस ग्रंथका महत प्रमाण होनेसें प्रव्यव्यय जादा लगऐंसे किमत करके इस ग्रंथकुं अलंकृत किया है और सुपो इस ग्रंथ अत्यंत मनोहर दो पर प्रमाद और विस्मृति करके क्रम उलंघन हूवा है सो दयालु सान और पाठक गए इस मेरे करें और इसमें दृष्टिदोषसें विस्मृतिदोषसें मति मोहसे बापाच्यादिकके दोषसें अक्षर पद कानो मात्रा वगेरे star अधिक हूवा होय सो दीर्घ दर्शायोंकुं शुद्ध करणा उचित है यह प्रार्थना युग प्रवरागम श्रीमनि कृपाचन्द्र सूरीश्वरजी के शिष्यरत्त विघविरोमणि ज्येष्ठांतेवासी श्रीमान् आणंदमुनिजी सें लघु गुरु नाता पं० । जयमुनिकी है सो श्रीमान् सजन पाठकवर्ग अवश्य सार्थक करेगें इति अनिल पामहे | चिरंनन्दन्तु पाठकाः ॥ चिरंनन्दन्तु गछेश्वराः ॥ चिरंनन्दन्तु श्रीकोटिक गलेश्वराः ॥ चिरंनन्दन्तु श्रीखरतरे - श्वराः ॥ चिरंनन्दन्तु श्री वीरशासनेश्वराः ॥ श्रीरस्तु ॥ विक्रम संवत १९७६ शाके १८४१ हिजरी सन् १३३७ ईसवी For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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