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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५) पिये ॥६॥ मो० ॥ मोती कोहो जो पहस्यो हार कि । चिरमठि कुण पहिरे हीये । जसु गांठे हो लाख कोमि गरत्थ कि। व्याज काढी दाम कुण लीये ॥ ७॥ मो० ॥ घर माहें हो जो प्रगढ्यो निधान तो। देस देसांतर कुण नमें । सोना नोहो जो पोरसो सीधतो। धातुर वादी कुण धमें ॥८॥मो॥ जिए कीधो हो जवहर व्यापार कि । मणिहारी मन किम गमें । जिण कीधो हो सदा हाल हुंकम्म कि । ते तूं कारो किम खमें ॥ए॥मो० ॥ तूं साहिब हो मोरो जीवन प्राण कि । ढुं सेवक प्रनु ताहरो । मुरू जीवत हो आज जनम प्रमाण कि। नव मुख जागो माहरो ॥ १० ॥ मो० ॥ तुझ मूर्ति होदेखता प्राय कि । समवसरण मुक संजरे।जिन प्रतिमा हो जिन सरिखी जाण कि । मूर्ख जे सांसो करे॥११॥मो॥तुह्म दरसण हो मुझ आणंद पूर कि। जिम जग चंद चकोरमा तुह्म नामें हो मोरा पाप पुक्षायकी। जिम दीन जगे चोरमा ॥१॥ मो० ॥ तुह्म दरसण हो मुक मन उरंग कि।मेह आगम जिम मोरमा । तुह्म नामें हो सुख संपत्ति थाय कि । मन वंबित फल मोरमा॥ १३ ॥ मो० ॥९ मांगुं हो हिव अविहम प्रेम कि।नित नित करूं निहोरमा । मुझ देज्यो हो स्वामी जव जव सेवकि । चरण न बोमु तोरमा ॥ १४ ॥ मो० ॥ कलश ॥ श्म अमरसर पुर संघ सुखकर मात नंदा नंदनो। सकलाप शीतलनाथ स्वामी सकल जन श्रानंदनो। श्रीवच लंबन वरण कंचन रूप सुंदर सोह ए। ए तवन कीधो समयसुंदर सुणित जन मन मोह ए ॥ १५॥ * ॥ इति श्री शीतलनाथजिनस्तवनम् ॥ * ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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