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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समत्त समास ॥ १५ ॥ खंति महव असाव मुत्ती तव संजमें सम्म । सत्यं सौच अकिंचन बंजचेर जई धम्मः । पढम अनित्य अशरण संसार एग अनत्त । श्रसुचि आश्रव संबर निआर नवि जावो नित्त ॥ १७ ॥ लोकसुलाव बोधपुरखन ग्यारम गाव । धरम साधक अरिहंत ए बारे नावन नाव । सामायक वेदोप स्थापन बीजो सोय । परिहार विसुङ्ग सूखमसंपराय चउत्थो जोय ॥१॥तिम अहक्खाय चरित्त सर्व जिय लोग प्रसिद्ध। जेह सुविधि आचरणे के जिय पाम्या सिद्ध । बारे विध निऔर तत्व बंधना च्यारं प्रकार । प्रकृति लिई अनुनाग प्रदेश नेदें निरधार ॥२०॥श्रणसण उणोदर वृत्ति संखेय रसनो त्याग । कायकलेस सहीनता बाहिर तप पड्लाग । पायबित विनय वेयावच्च तेम सज्जाय । ध्यान कासग्ग अन्यंतर तप षमविध थाय ॥ २१ ॥ प्रकृति सुनाव काल अवधारण श्रित निरबंच । अनुलागै रसतेम प्रदेसें दलनों संच । पट प्रतिहार धार तरवार मद्य वलितेम । निगम चित्रकर कुंलकार नंमारी जेम ॥ ३॥ अनुक्रम आउनामना जाख्या जे जे जाव । तिम ज्ञानावरणादिक अमना एहसनाव । इम संखे विवरणकीना आहे तत्त । प्रस्तावे पाम्यो वरणवस्यु हिव मोखतत्त ॥ २३ ॥ संतपदे परूवण अव्यने क्षेत्र प्रमाण । फरसन काल पांचमों बो अंतर जाण । नाग सातमो नाव श्रावं तिम अलपबहुत्त । ए नवनेदें जावन करस्युं नवमो तत्त॥२५॥ मोक एक पदथी ने जे पदे अविनाजाव । व्योम कुसुम तिम ससिक शंग जिम नहींय अजाव । एहवों जे पद मोक्ष तेहनों बृ०२ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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