SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 324
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०७) गेत्रिएदे, ये व्याकरण साख ॥ काम सरै नहि कोश्न, नाव जणे में पाख ॥ ५॥ रस विन कनक न नीपजै, जल विन तरुथर वृक्ष ॥ रसवति रस नही लवण विण, तिम मुज विण नही सिझ॥६॥ मंत्र यंत्र मणि औषधी, देवधर्मगुरु सेव ॥ नाव विना ते सवि वृथा, नाव फलै नितमेव ॥७॥ दान शिल तप जे तुमें, विध ५ कह्या वृत्तांत ॥ तिहां जो नाव न ढुंततो, कोई सिद्धी नव ढुंत ॥ ७ ॥ जाव कहे में एकले, तास्या बहु नर नार ॥ सावधान असांजलो, नाम कहूं निरधार ॥ ए॥ (ढाल चौथी। कपूर हुवै अति उजलो रे, ए देशी॥) काननमें कालसग्ग रह्यो रे, प्रश्नचंद शषिराय ॥ते में कीधो केवली रे, ततखिण करम खपाय ॥ १॥ सोजागी सुंदर, नाव वमो संसार ॥ एतो बीजो मुझ परिवार, सौ॥ दानादिक विण एकलो रे, पोहचाडूं नवपार ॥ सो० ॥२॥ वंश ऊपर चढ खेलतो रे, एलापूत्र अपार ॥ केवलज्ञानी में कियो रे, प्रतिबोध्यो परिवार ॥ सो ॥३॥ जूख तृषा खमें अतिघणी रे, करतो कूर आहार ॥ केवल महिमा सुर करै रे, कूरगडू अणगार ॥ सो०॥४॥ लानथी खोज वाधे घपो रे, श्राण्यो मन वैराग ॥ कपिल श्रयो मुनि केवली रे, ते मुख्ने सोजाग ॥ सो० ॥ ५ ॥ अर्णिकासुत गबनो धणी रे, खीणजंघा वलि जाण, कीधो अंतगम केवली रे, गंगाजल गुण खाण ॥ सो० ॥६॥ पनरेसें तापसजणी रे, दीधी गौतम दिक ॥ ततखिए कीधा केवली रे, जो मुझ मांनी सीख ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy