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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१५) जिन सुखकार । ऊपर मजलेरे शीतल जिनवरजाण । नमि जिन स्वामीरे पारस नाथ कहाण ॥ नवि० ॥४॥ मूखनायक बारम जिनचंद । बिंबावलि सोहे अतिचंग । वुहारि नगरमा अतिनगरंग कृपाचं सूरिरे । चलमासो कीनो जाण । जगणीसे चमोत्तरेरे । गाया जिनगुण गान ॥ नवि० ॥ ५॥ इति श्री १२ मा वासु पूज्य लगवाननो स्तवनं संपूर्णम्॥ ॥ अथ बीजनो वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ दूहा ॥ वर्षमान जिनवंदिये त्रिशलानंदन देव । सिंह लंग्न सेवित सदा । सुरपति सारे सेव ॥२॥ जन्म समेथी जगगुरु । अतुल बली वमवीर । तप उत्तम विधियुत कह्यो जलनिधि जिम गंजीर ॥ १॥ ढाल १ ली ॥ कृपानाथ मुज वीनति अवधार ॥ ए देशी ॥ धर्म करो जिन राजनोजी । आणी उलट लाव, दोय नेदे आराधतांजी । पामो श्रातम स्वलाव नविकजन सेवो श्रीजिनवाणि निजगुण मणिनीखाण ॥ लम् ॥ १ ॥ तिथी आराधन फल तणोजी । शास्त्रमाहे अधिकार बीज आराधो नविजनाजी । तप किरिया विधिसार ॥नम् ॥ ५ ॥। दोय मास लघु दूजनेजी। जावजीव उत्कृष्ट दोय वरस दोय मासमांजी । करो बीज सुन प्रष्ट ॥ ज० ॥ ३ ॥ पमिकमणा दोय टंकनाजी । देववंदन निरधार विधिसेती फल नीपजेजी । पामे जवनो पार ॥ नम्॥४॥बीज दिवस नो सहु जुवेजी। चंत्रोदय सुप्रसीछ । वधति कला तिम जाएंजोजी । धर्मश्री For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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