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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१० ) सिहू प्रभु पासलहिजे जिक्षा हारी नाम कहीजे ॥ ७ ॥ निंदक पूजक हे सम नायक पिए सेवगकुं सदा सुख दायक तजी परिग्रह नए जगनायक नाम अतीत सर्वे विध लायक ॥ ८ ॥ शत्रु मित्र समचित्त गिली जे नामदेव अरिहंत जीजे । सयल जीव हितवंत कही जे सेवक जांण महापद दीजे ॥ ए ॥ सायर जेसा होय गंजीरा दूषण नहिं इकमाहिं सरीरा मेरु अचल जिम अंतर जामी पिए नरहे प्रभु एकए गंमी ॥ १० ॥ लोक कहे प्रभुजी सब देखे पिए सुपनोकबहु नवि पेखे रीस विना बावीस परीसद् सैन्या जीती तें जगदीसह ॥ ११ ॥ मानविना जग श्रांण मनावे मायाविना सवसुं मन लावे | लोन विना गुण रास ग्रहीजे निक्षु जये त्रिगमो सेविजे ॥ १२ ॥ निग्रंथपणे सिर बत्र धरावे नाम जति पिए चमर दुलावे | अजय दान दाता सुखकारण आगे चक्र चले रिदार ॥ १३ ॥ श्रीजिनराज दयाल जणीजे कर्म सबको मूल खणीजे । चौविह संघ जे तीरथ थापे लबी घणी देखी नवि पे || १४ | विनयवंत जगवंत कहावे नाकिसही कूं सीस नावे | अकिंचनको बिरुद धरावे पिए सोवन पंकज पग ठावे ॥ १५ ॥ तजि रंज निज आतम ध्यावे शिव रमणीकुं साथ चलावे राग नहीं सेवग पितारे देष नहीं निगुणा संग वारे ॥ १६ ॥ तेरी महिमा अनुत कहिये तेरे गुणांको पार न लहिये । तुं प्रभु समरथ साहिब मोरा हुं मनमोहन सेवक तोरा ॥ १७ ॥ तूं त्रिहुं लोक तणो प्रतिपाला । मेहूं अनाथ तूं दीनदयाला । तुं सरणागत राखण् For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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