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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar (२०) ॥४॥ नीरंजनशुं नेहधरीने । आगे उलग करस्यां ॥ अद्भुत आदि जिनेसर निरखी । प्रेम सुधारस पीस्यारे ॥ आ० ॥५॥ पुष्प सुगंधा खेश पंचरंगा । हारसुगंधा गूंथी ॥ पैहिरावी प्रजुकं लहिस्यां । शिव मारगनी सूधीरे ॥ ॥६॥ गहिर स्वरे जिनवर गुणगातां । जात्र नवाएं करिये ॥ मनगमती जमती विचजमतां । जवसायर निसतरियरे ॥ श्रा ॥ ७ ॥ पूरव नवाणूं वार प्रथम जिन रायणरूखे आया ॥ ए तीरथ शुल नावें फरसी । करिये निरमलकायारे ॥ आप ॥७॥ लान नदेए गिरिवर लहिये । कहे श्म केवलनाणी ॥ श्रीजिनचंद सदा हितवत्सल प्रेम घणे चित्तवाणी रे ॥श्राप ॥ ए ॥ इति सिघाचलस्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्री तीरथमाला स्तवनं लिख्यते ॥ शत्रुजय झपन समोसस्या जला गुण नसारे सीधा साधु अनंत । तीरथ ते नमुरे ॥ तीन कल्याणक तिहां श्रयां । मुगतें गयारे । नेमीसर गिरनार ॥ ती॥१॥ अष्टापद एक देहरो। गिरिसेहरो रे ॥जरते जराव्याबिंब ॥ ती० ॥ आबु चौमुख अतिजलो। त्रिनुवन तिलोरे ॥ विमलवसइ वस्तुपाल ॥ तीन ॥२॥ समेतशिखर सोहामणो । रलियामणोरे ॥ सिझा तीर्थकर वीश ॥ ती० ॥ नयरी चंपा निरखीये । हीये हरखीये रे ॥ सीधा श्रीवासुपुज्य ॥ ती० ॥३॥ पूर्वदिशें पावापुरी शके जरीरे । मुक्तिगया महावीर ॥ ती ॥ जेसलमेर जुहारीये । मुःख वारीयेरे ॥ अरिहंत बिंब अनेक ॥ ती० ॥४॥ वीकानेरज वंदीये । चिरनंदीयेरे ॥ अरिहंत देहरां आठ ॥ती० ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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