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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) लाइ । इण ऋतु सूतां एकली हो लाल । क्यू कर रैण विहाई ॥ हो० ॥ १० ॥ काली कालाहण मिलि हो लाल । लाघवमे वर खंत । अरज सुणीने साहिबा हो लाल । पूरो मो मनखंत ॥ हो ॥ ११ ॥ आसोजे आंसू करे हो लाल । नाह विना निस दीस । सारन पूरी साहिबे हो लाल । राखि रह्यो मनरीस ॥ हो ॥ १२ ॥ काती दृढ गती करी हो लाल ॥ जाय मिली गिरनार । देखी मुख निज नाहनो हो लाल । सफल गिणे अवतार ॥ हो० ॥ १३ ॥ संयम ले पिट सेंहथे हो लाल । पामे लवनो पार । इण पर पाले प्रीतमी हो लाल । धन धन ते नर नारि ॥ हो० ॥ १४ ॥ जे कीधी पशु ऊपरे हो लाल । भो पर करज्यो देवचंद नणी द्यो करि दया हो लाल। प्रनु चरणारी सेवा हो ॥ १५ ॥ इति श्रीनेमराजीमतीनो बारमास संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्रीपार्श्वनाथजीकी घग्घर नीसाणी लिख्यते ॥ ॥ सुख संपति दायक सुरनर नायक । परतिख पास जिनंदा हे । जाकी छवि कांति अनोपम उपित । दीपत जाण दिणंदा हे । मुख ज्योति जिगामिग झिग मिग २ । पूरण पूनमचंदा हे । सब रूप सरूप वखाणाहि जूपत । तूंही त्रिनुवन नंदा हे ॥१॥ करुणा सागर लोक सबे मिल । जाका जस्स श्रुणंदा हे । तेरी खिजमत्त करे इक चित्तसुं तो सेवक धरणिंदा हे । तें जलता आग निकाट्या नाग । किया वम नाग सुरिंदा हे । तो चरणां आय रह्या लपटाय । कला अति केलि करंदा हे ॥२॥ इक दिन्न महा रन्नवन पंचागनि । तापस ताप तपंदा हे । फल फूल For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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