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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२५) सुनिने ए इ ॥ मु० ॥ ॥ ५॥ राग वधे स्थिर लावधी जी। ज्ञान विना परमाद ॥ वीतरागता ईहता जी । विचरे मुनि सास्हाद ॥ मु० ॥ ॥ ६॥ ए शरीर नवमूल ले जी। तसु पोषक आहार ॥ जाव अयोगी नवि हुवे जी । तां आनादि आचार ॥ मुनी० ॥ यो० ॥ ७ ॥ कवलाहारे निहारे जे जी ॥ एह अंग व्यवहार ॥ धन्य अतनु परमातमा जी । जिहां निश्चलता सार ॥ मु० ॥ यो ॥७॥ परपरिगति कृत चपलता जी । केम मूकशे एह ।। एम विचारी कारणे जी॥ करे गोचरी तेह ॥ मु० ॥ या ॥ ए॥ क्षमावंत दयालुआ जी। निःस्पृह तनुनीराग ॥ निरविषे गजगति परें जी। विचरे मुनि महानाग ॥ मुनी ॥ ॥१०॥ परमानंद रस अनुनव्या जी। निज गुण रमता धीर ॥ देवचंत्रमुनि वंदतां जी । लहीये जवजल तीर ॥ मु० ॥ो० ॥ ११ ॥ इति प्रथम समिति सकाय संपूर्णा ॥ ॥ अथ द्वितीय भाषा समिति सज्झाय लिख्यते । ॥ नावना मालती चूशीयें । ए देशी ॥ साधुजी समिति बीजी आदरो । वचन निर्दोष प्रकाश रे। गुप्ति उत्सर्गनो समिति ते । मार्ग अपवाद सुविलास रे ॥ सा ॥१॥ए आंकणी ॥ नावना बीजी महाव्रत तणी। जिन लणी सत्यता मूल रे ॥ नाव अहिंसकता वधे । सर्व संवर अनुकूल रे ॥ सा ॥२॥ मौन धारी मुनि नवि हुवे । वचन जे आश्रव गेह रे ॥ आचरण ज्ञाननें ध्याननो । साधक नपदिशे तेह रे सा० ॥ ३ ॥ नदित पर्याप्ति जे वचननी । ते करि श्रुत अनु वृ० १५ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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