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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५) दोहग टालणहार ॥ १४ ॥ चाल लावणी ॥ करूं अरज एक तो जिनपति । कंत कुष्टसें नही मरते । पूरब करमके लिखित लेख जे। किसके टारे नहीं टरते ॥ १५॥ पण तुऊ सासन जगत हेलना । जगत ढंढेरा वाजत है। आप कर्म अरु जैन धर्मके । फल पाई यों लाजत हे ॥ १६॥ यो मुख मोसें सह्यो जात नाही। आदिनाथ जग रखपाला करुणाकरके रोग निवारण । गुण कीजे जग प्रतिपाला ॥ १७ ॥ यद प्रसन्न हुय फल बीजोरो । हाथ तणो फल तब दीनो । मयणा तब नहास नई। मनचिंते सब कारज सीनो ॥ १० ॥ नौ दिन नमण नीर तनु फरसें । कुष्टरोग सब नासत हे कामदेव अरु अमर समोवम । नृप श्रीपाल सोहावत हे ॥ १५॥ या कीरत प्रन्नु तिहारी नूतल । प्रगट प्रबल हे जस तेरो । आसु चैत्र मासमें महिमा। देश देशमें प्रनु तेरो ॥ २०॥ फिर वागम देश वमोद नगरमें जग पर प्रनु करुणा कीनी। कितने वरस लग महिने महिमा । अविचल जूतल शघिदीनी ॥१॥ दिवा पर तुरकान जयो तब । पातस्याह लमवा आयो । चूत जूत पत्थरकी मूरत जम मूलांसें उखरायो ॥ २२ ॥ बहुत दिनां लग कीवि खराश् । थाको यों वाचा बोले । देव हिंदको वमो जागतो । यूं बोलत फिर फिर मोले ॥ २३ ॥ सुनो वात काजी मुहां तुम । एक वातसें त्रासेगा । गौब्राह्मण प्रतिपाल कहाई । गोवधसें येनासेगा॥धागोवध करण लगे जब निजरे। देख सके क्यो प्रतिपाला। करण युद्ध जब नये महाबल । शस्त्र कमो कम विकराला ॥ २५॥ हो ॥महायुद्ध करणे लगे।घाव For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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