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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१८) रात्रि नोजनने कह्यां जी। बहु बीजनो नीम ॥ ५५ ॥ ज० ॥ घोलवमां वली रीगणां जी । अनंतकाय वतीश । अण जाण्यां फल फूलमां जी। संधाणां निशदीस ॥५६॥ ज० ॥ चखित अन्नवाशी थयुं जी। तुब सहु फल दद । धर्मी नर खाये नहीं जी । ए बावीश अनदय ॥ ५५ ॥ ज०॥ न करे निबंसपणे जी । घरना पण आरंज । जीव तणी जयणा घणी जी। न पीये अणगल नीर ॥ ५० ॥ ॥ घृतपरें पाणी वावरे जी।बीये करतो पाप । सामायिक व्रत पोषधे जी। टाले नवना पाप ॥ एए ॥ ज० ॥ सुगुरु सुदेव सुधर्मनी जी। सेवा नक्ति सदीव । धर्म शास्त्र सुणतां श्रका जी। समजे कोमल जीव ॥६० ॥ ज०॥ मास मासने आंतरें जी। कुश अग्रतुंजे बाल । कला न पोहोंचे शोलमी जी। श्रीजिनधर्म विशाल ॥ ६१ ॥ जः॥जिन धर्म मुक्ति पुरी दीये जी।चनगति भ्रमण मिथ्यात्व। एम जिनहर्ष प्रकाशयें जी।त्रीजुं तत्त्व विख्यात ॥६॥०॥ ॥ ढाल मी ॥ मधुकर आज रहो रे मत चलो ॥ए देशी ।। श्रीजिनधर्म आराधिये जी । करी निज समकित शुध नवियण । तप जप किरिया कीधली जी। लेखे पझे विशुद्ध ॥६३ ॥नः॥ श्री० ॥ कंचन कशी कशी सीजीयें जी। नाणुं लीजें परीख ॥ ज० ॥ देव धर्म गुरु जोइनें जी। आदरीयें सुणी शीख ॥६४ ॥ नम्॥ श्री० ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्मनें जी। परहरियें विष जेम ॥ ज०॥ सुगुरु सुदेव धर्म, जी । ग्रहिये अमृत तेम ॥६५॥ न० ॥श्री० ॥ मूल धर्म तो जिन कह्यो जी। समकित सुरतरु एह ॥ ज० ॥ नवनव सुख संपति की जी। For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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